सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
जी हाँ! आज एक अप्रैल का दिन है, जिसे सभी दुनिया भर के लोग "मूर्ख दिवस" (अप्रैल फूल) के रूप में मनाते हैं। वैसे इस विषय पर काफी विवाद हैं कि "मूर्ख दिवस" हमारे देश से सर्वप्रथम प्रचलन में आया अथवा विदेशों से होते हुये हमारे यहाँ आया? खैर हमें इस पचड़े में नहीं पड़ना है। हमें तो इस मूर्ख दिवस के अवसर पर कुछ चुनिंदा एवं मजेदार मूर्ख बनाने एवं बनने की कुछ घटनाओं से दो चार होना हैं। यहाँ यह कहना जरूर लाजिमी होगा कि जिस दिमाग में भी इस मूर्ख दिवस का फितूर आया होगा वह कोई महामसखरा व विनोदप्रिय व्यक्ति ही हो सकता हैं। वैसे इस संबंध में एक बात याद आ रहीं है। (यह बात मूर्ख दिवस मनाये जाने के पूर्व की हैं।)
किसी समय किसी स्थान के बुद्धिजीवी व्यक्तियों ने वह महसूस किया था, कि हम रोजाना रोजी रोटी तथा अन्य सामान्य जन जीवन के कार्यों को निपटाते निपटाते. कुछ दूर होते जा रहे हैं। आपसी संबंधों में दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं। जीवन नीरस होता जा रहा है, अस्तु कुछ ऐसा किया जाये कि किसी बहाने एक दूसरे के करीब आने का मौका मिले व मनोरंजन भी हो। तभी किसी फितरती इंसान ने इस मूर्ख दिवस का यानि मूर्ख बनाने का सुझाव दिया जो उपस्थित सभी लोगों को खूब भाया। शायद, "तभी से मूर्ख दिवस मनाने की प्रथा शुरु हुई।
है न आश्चर्य की बात, साथ ही साथ उसने अपने जीवन को अहम मोड़ दे दिया। हुआ कुछ यूँ एक महाशय थे उनको चढ़ा इश्क का भूत! किसी लड़की से उन्हें बेपनाह मुहब्बत हो गई। लड़की भी उनकी और आकर्षित थी। लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पा रही थीं यानि इज़हारे मोहब्बत नहीं हो पाया था। सो उसका इलाज हमारे इस मजनूं महोदय ने मूर्ख दिवस में ही खोज डाला । इत्तफाक ऐसा ही हुआ कि जब वो तड़फ रहे वे प्यार के इजहार के लिये तभी अप्रैल फूल का दिवस भी आने वाला था।" अकस्मात उन्होंने एक पत्र अपनी प्रेमिका को जो ऊपरी तौर पर देखने से लगता था अप्रैल फूल बनाने के लिये किसी ने (लड़की की) पत्र लिखा है। जो कि उन्होंने उसके घर वालों को पता न चल पाये, इसलिये लिखा था। परंतु वास्तव में वह प्रेम पत्र था जिसे उनकी प्रेयसी ने समझ लिया ,और उनके अनोखे इज़हारे मोहब्बत पर बड़ा प्यारा सा खत जवाब में दिया। परिणामतः दोनों कालांतर में . परिणय सूत्र में बंध गये। बाद में लड़की के घर वालों को जब इन महाशय के प्रेम पत्र यानि अप्रैल फूल के पत्र का पता चला तो वे बड़े हतप्रभ रह गये कि क्या बड़े सुहावने व प्यारे अंदाज से अप्रैल फूल बनाया गया था उन्हें ।
कभी - कभी ऐसे मजाक का पासा पलटने पर लेने के देने भी पड़ जाते हैं। तो जनाब इस बात के लिये हमेशा सतर्क रहिये कि किसी को मूर्ख बनाने से पूर्व उसके साथ किया जाने वाला मजाक फूहड़ न हो।मजाक सीमा के अंदर हो ताकि मूर्ख बनने वाला भी उसे बड़ी सहजता के साथ ले। अन्यथा बात बिगड़ने में जरा भी वक्त नहीं लगता है। जैसे ही एक साहब अपने आपको बहुत मसखरा समझते थे। इसी चक्कर में वे एक दिन बड़े स्टोर पर पहुँचे और एक छोटा सिक्का काऊंटर पर फेंकर कर कहा "दिया सलाई की पेटी चाहिये।" सेल्समेन पेटी ले आया तो उन्होंने उसे अपना कार्ड थमाकर रौब से आदेश दिया कि घर पहुँचा देना। सेल्समेन भी सवा सेर था। उस समय तो सिर्फ झुककर सलाम करता हुआ चुप रहा, लेकिन बाद में स्टोर का भीमकाय ट्रक लेकर गया और ट्रक से ग्राहक महोदय के बगीचे की दीवार गिराकर फूल की क्यारियाँ रौंदता हुआ उनके दरवाजे के सामनें गाड़ी खड़ी कर नम्रता पूर्वक बोला- "श्रीमान जी, दियासलाई की पेटी हाजिर हैं"। उन मसखरे साहब ने जब बगीचे की दुर्गति देखी तो अपना माथा पीट डाला।
तो अप्रैल फूल यानि मूर्ख दिवस के लिये आप सभी नयी नयी युक्ति भिड़ानी शुरु कर दीजिये। अपने मित्रों, परिचितों, रिश्तेदारों में खोजिये कि किसे मूर्ख बनाना है और तैयार हो जाइये मूर्ख दिवस के लिये। लेकिन सावधान इस दिन मूर्ख बनाने के चक्कर में स्वयं आपको भी कोई मूर्ख न बना ले इसके लिये ख़बरदार रहिये। खैर! बन भी जाते हैं तो कोई बात नहीं ये दिन ही तो हैं कि मूर्ख बनाया जाये। और बना भी जाये।
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