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दशकों बाद परिवारवाद से उबरी कांग्रेस ने दलित चेहरे को अध्यक्ष पद पर दिया मौका

  लखनऊ। दशकों बाद परिवारवाद से उबरी कांग्रेस ने दलित चेहरे को अध्यक्ष पद पर मौका दिया है। हालांकि इस बदलाव से उसे कुछ हासिल होने वाला नही। आज 137 वर्ष कांग्रेस के गठन को हो रहा हैं आज तक किसी पसमांदा मुस्लिम को राष्ट्रीय अध्यक्ष नही बनाया अगर कांग्रेस ने पसमांदा समाज से किसी चेहरे को संगठन में जगह दी होती, वह चाहे पूर्व में रह हो या वर्तमान में, पंजा छाप पार्टी की स्थिति ही कुछ और होती पर सिर्फ इस्तेमाल करने की कला में माहिर कांग्रेस ने पसमांदा समाज को बस उत्पीड़ित ही किया है।

यह बात आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राईन ने अपने बयान में कही है। उन्होंने कहा कि दशकों सत्ता में रही कांग्रेस के बुनियादी नेताओं ने पहले ही पसमांदा समाज को लेकर अपनी सोच जाहिर कर दी और आर्टिकल   341/3 पर धार्मिक पाबंदी लगाकर इस समाज को उसके हक़ और हुकूक से महरूम कर दिया। 85 फीसदी आबादी वाले पसमांदा मुस्लिम समाज को दरकिनार करना अब उसे भारी पड़ रहा है। आज उसके सामने पहचान और अस्तित्व बचाने का संकट है। तमाम करवट लेकर भी किसी नतीजे पर नही पहुंच पा रहे उनके नेता। लंबे समय बाद परिवारवाद को छोड़ पार्टी ने दलित चेहरे को आगे किया है और पचास साल पहले भी दलित को अध्यक्ष बनाया था कोई नया काम नहीं हैं लेकिन कांग्रेस ने पसमांदा समाज के किसी व्यक्ति को न सदन तक पहुंचने दिया और न ही संगठन में ही जगह दी। वसीम राईन ने कहा कि यह दशा कमोबेश सभी सिकुलर दल की रही, समाजवादी पार्टी ने पसमांदा  समाज से किसी को राज्यसभा आज तक  नही भेजा और न ही बसपा ने किसी पसमांदा मुस्लिम को विधानपरिषद  में बैठने दिया। धर्मनिरपेक्ष दल का झूंठा लबादा ओढ़े दोनो दलों ने पसमांदा समाज का बस इस्तेमाल ही किया है। प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि आज यह समाज पिछड़ा जरूर है उसकी ज़िम्मेदार भी कांग्रेस हैं आज़ादी के पहले से ही कांग्रेस पसमांदा मुसलमानो का इस्तेमाल कर रही हैं मोमिन कांफ्रेंस के ज़रिए जिन्ना से लड़ाया तभी पसमांदा मुसलमान सिकुलर था पर उसका सिर्फ़ वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया गया हिस्सेदारी नही दी गई  लेकिन खुद फैसला लेने में सक्षम है और उसे अपनी पसंद जाहिर करने तय करने से कोई रोक भी नही सकता।आज भाजपा पसमांदा समाज को बिना वोट लिए हिस्सेदारी दी हैं और काम भी कर रही अब सिकुलर दलों क्यू दर्द हो रहा हैं हिस्सेदारी नही तो वोट नही।

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