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पोर्टल एवं वेब न्यूज़ चैनल को फर्जी कहने वालों के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में किया जाएगा वाद दाखिल : एके बिंदुसार



डिजिटल मीडिया एवं नागरिक पत्रकारिता के अधिकारों पर सवाल उठाने वाले व फर्जी कहने वाले अधिकारी हो या जनप्रतिनिधि जनसूचना अधिकार अधिनियम के तहत करें उनसे सवाल

सत्य स्वरूप संवाददाता

नई दिल्ली। एक ओर जहां देश के प्रधानमंत्री एवं समूचा भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने डिजिटल मीडिया युग की स्थापना का संकल्प लिया है वहीं दूसरी ओर सत्ता पक्ष के ही विधायक ने पत्रकारों के अभिव्यक्ति पर तमाचा मारते हुए उन्हें जेल भेजवाकर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया का गला घोट दिया और अब अपने ही सरकार के मुखिया को चुनौती देते हुए डिजिटल मीडिया के पत्रकारों के अधिकारों पर भी सवाल उठाते हुए और कार्रवाई करने की बड़ी बात कह दी हैं। इस खेल में कानून के रक्षक भी शामिल है। 

  चंदौली पुलिस का गैर जिम्मेदारी किसी लोकतांत्रिक देश में, जहां कानून के और संविधान के अनुपालन की अवधारणा हो, किसी सत्ता पक्ष के विधायक के संबंध में खबरें चलाने पर पत्रकारों को गिरफ्तार कर उन पर एससी/एसटी एक्ट लगाने की अनुमति किसी को नहीं दी जा सकती। ये तो पुलिस द्वारा किया गया बौद्धिक एनकाउंटर है। दरअसल कुछ लोग शासन सत्ता के चहेते अधिकारी होते हैं जो अपने को स्वम्भू सर्वशक्तिमान मान लेते हैं और उन्हें अपनी आलोचना व खबरों का आईना पसंद नहीं होता है तो वे कानून की मनमानी व्याख्या करके कानून का ही मखौल उड़ाने लगते हैं। ऐसा ही मामला चंदौली जिले का सामने आया है।


क्या न्यूज़ पोर्टल चलाना गैरकानूनी है? क्या अख़बार प्रकाशित करना देशद्रोह है? क्या पुलिस और पुलिस अधिकारियों एवं भ्रष्ट राजनेताओं  के काले कारनामें प्रकाशित करना अपराध है? क्या कहीं प्रकाशित सूचना, खबर को फेसबुक व्हाट्सएप पर शेयर करना अपराध है? क्या शेयर करने वाला गिरोहबंद है? क्या चंदौली जिले की पुलिस इसे sc-st एक्ट का अपराध मानती है। चंदौली पुलिस ने दो पत्रकारों को  sc-st के अंतर्गत मुकदमा पंजीकृत करके  गिरफ्तार किया है। यह जानकर आश्चर्य होता है कि इतनी बड़ी जिम्मेदार पदों पर बैठे हुए लोग कैसे गैर जिम्मेदारी निभा रहें है

गलत खबर या भ्रामक खबर चलाने पर संबंधित अधिकारी, विधायक, सांसद या मंत्री या नागरिक, जिसकी भी मानहानि होती है, सबसे पहले नोटिस देकर खबर का खंडन करने को कहता है। ऐसा न करने पर फौज़दारी या दीवानी मुकदमा कायम किया जाता है। यहां न कोई नोटिस दी गयी न खबर का खंडन भेजा गया न मानहानि का फौजदारी/दीवानी मुकदमा कायम कराया गया। किसी अधिकारी को स्वतः ऐसा करने का अधिकार उनकी सेवा नियमावली में नहीं दिया गया है। इसके लिए उन्हें संबंधित राज्य/केंद्र सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है जो अत्यंत मुश्किल से मिलती है। इसलिए इसमें पुलिसिया रास्ता अपनाया गया और दो पत्रकारों कार्तिक पांडे और रोहित तिवारी  को एक एफआईआर के आधार पर एससी एसटी एक्ट का मुकदमा कायम करा दिया गया है ताकि जल्दी ज़मानत न हो सके। सत्ता पक्ष के माननीय विधायक एवं पुलिस की मिलीभगत से यह जो संविधान विरोधी कार्य हुआ हैं आज वर्तमान समय की मांग इस पर सभी सामाजिक संगठन पत्रकार संगठन एवं राजनीतिक दल के लोग अवश्य विचार विमर्श करें कानून पर उठे सवाल का जवाब आम जनता को दें। 

यहां ऑनलाइन डिजिटल मीडिया पर उठे सवालों को भी जनमानस के बीच में स्पष्ट करने की आवश्यकता है क्योंकि बार-बार डिजिटल मीडिया पर सवाल उठाकर भ्रम पैदा करने वाले लोगों को करारा जवाब मिल सके। 

किसी ऑनलाइन वेबसाइट या इंटरनेट पर अन्य माध्यम से ब्राडकास्ट चैनल को वेब चैनल कहते हैं और न्यूज़ को इंटरनेट पर ऑनलाइन ब्रॉडकास्ट करने वाले चैनल को वेब न्यूज़ चैनल या ऑनलाइन न्यूज़ चैनल कहा जाता हैं। आज मीडिया जगत इलेक्ट्रानिक चैनलों से आगे बढ़ कर अब वेब चैनल की ओर बढ़ गया है। वेब पत्रकारिता के कई स्वरूप आज विकसित हुए हैं, जैसे ब्लाग, वेबसाइट, न्यूज पोर्टल और वेब चैनल आदि। इनके माध्यम से एक बार फिर देश की मीडिया में नए खून का संचार होने लगा है। इस नए माध्यम का तौर-तरीका, कार्यशैली और चलन सब कुछ परंपरागत मीडिया से बिल्कुल अलग और अनोखा है। जैसे, यहां कोई भी व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत पत्रकारिता कर सकता है। वह ब्लाग बना सकता है और वेबसाइट के साथ वेब चैनल भी। हालांकि इन नए माध्यमों में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रभाव का अध्ययन किया जाना अभी बाकी है लेकिन अभी तक जो रूझान दिखता है, उससे कुछ आशा बंधती है। पत्रकारिता की इस नई विधा को परंपरागत पत्रकारिता में भी स्थान मिलने लगा है और इसकी स्वीकार्यता बढ़ने लगी है। परिवर्तन तो परंपरागत मीडिया में भी होना प्रारंभ हो गया है। आज पत्रकारिता एक अत्यंत प्रबल माध्यम बन चुका है और इसके साथ-साथ वेब न्यूज़ पोर्टल और वेब न्यूज़ चैनल का प्रचलन भी बढ़ा हैं।

1-  न्यूज़ पोर्टल पर

2- युट्यूब चैनल

3- न्यूज़ एप्प

4-फेसबुक

5-अन्य

  बदलाव और माध्यम बीते दो -ढ़ाई सालों में ये ट्रेंड बदल गया हैं । बड़े चैनल से जुड़े इक्के दुक्के स्मार्ट पत्रकारों ने लोकल और हाइपर लोकल ख़बरों को स्थान देने के लिये न्यूज़ पोर्टल या वेब न्यूज़ का मंच तैयार किया । अब सभी खबरें टीवी के अंदाज़ में ही वेब न्यूज़ पर दिखने लगी । इंटरनेट और डिजिटल इंडिया के बढ़ते प्रभाव में लोग मोबाइल पर खबरें देखने में रुचि लेने लगे । कोई भी शख्स अपने मोबाइल पर फेसबुक , यूट्यूब , वेबसाइट या न्यूज़ एप्प के माध्यम से अपने गाँव , कस्बे, मोहल्ले या कॉलोनी से सम्बंधित खबरें बिलकुल टीवी के अंदाज़ में देख सकता हैं । आईडिया धीरे धीरे हिट हो चला और लोकल सेक्शन से इन वेब चैनलों को रेवेन्यू भी आने लगा।

डिजिटल मीडिया का मखौल उड़ाने वाले लोगों को क्या यह सब नहीं दिखता यह भी एक सवाल खड़ा हो रहा है?

गहराई से जब अध्ययन किया गया तो यह स्पष्ट हुआ कि डिजिटल मीडिया से जुड़े हुए पत्रकारों ने तमाम भ्रष्टाचारी अधिकारियों नेताओं का खुलासा किया हैं उनके काले कारनामों का पर्दाफाश किया है इससे बौखलाए कुछ लोगों ने पत्रकारों की हत्या तक कराने में पीछे नहीं हटें, और कई के ऊपर तो फर्जी मुकदमे लाद दिया गया हैं जो आज जेल में बंद है। 

आज वर्तमान में जो भी लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया के साथ सौतेला व्यवहार होता हुआ दिखाई दे रहा है देश की आवाम को अपने हक अधिकार सम्मान सुरक्षा और न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खाना पड़ रहा है इसके पीछे मात्र एक ही कारण है राजा का निरंकुश होना जिस देश का राजा निरंकुश हो जाए वहां की प्रजा फटे हाल हो जाती है। 

लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया के अस्तित्व को बचाने के लिए पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं को आगे आना होगा अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक होना होगा एक ऐसी क्रांति करने की आवश्यकता है जिसके माध्यम से इन भ्रष्ट अधिकारियों और राजनेताओं को रिजेक्ट किया जा सकें। 

"उठो पत्रकारों आंखें खोलो लग जाओ राष्ट्र परस्ती में

भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजाओ भारत के बस्ती बस्ती में"

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